Tirupati Balaji Mandir | तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास व कहानी
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तिरुपति बालाजी का इतिहास | tirupati balaji mandir kahan hai
भारत का यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमाला पर्वत पर स्थित है और वैसे तो भारत को देवभूमि भी कहा जाता है और जिसके चलते इस मंदिर की महिमा भी अपरंपार है अनेकों रहस्य है अनेकों महत्व है और हमारे देश में अनेकों मंदिर होने के कारण जिनकी अपने आप में कुछ ना कुछ विशेषता है जिसके कारण भारत को मंदिरों का देश भी कहा जाता है तिरुपति बालाजी मंदिर भारत के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है जिसमें भक्त श्रद्धालु श्री वेंकटेश्वर स्वामी के दर्शन करने के लिए आते हैं और अपने चमत्कारों के कारण यह मंदिर केवल भारत में नहीं बल्कि विदेश में सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है और यहां स्वयं भगवान विष्णु के अवतार वेंकटेश्वर स्वामी की पूजा होती है और तिरुपति बालाजी का वास्तविक नाम भी श्री वेंकटेश्वर स्वामी जी है
पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर का 9 वीं शताब्दी से इतिहास शुरू होता है जब कांचीपुरम के शासक पलवो ने इस मंदिर को अपने अधिकार में ले लिया था लेकिन बाद में 15 शताब्दी में इस मंदिर को विजयपुर के शासक ने अपने अधिकार में ले लिया और 15 वी शताब्दी के बाद ही इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी और जिसका कारण यह है कि इस मंदिर की विशेषताएं और महत्व आज तक देश विदेश में फैली हुई है और जब अंग्रेजों ने 1843 से 1933 तक अपने शासनकाल में इस मंदिर की बागडोर संत हाथीरामजी मटके के हाथ में दे दी थी जिसका सारा कार्यभार में ही संभालते थे और जिसके बाद यह मंदिर अपने रहस्य अपनी विशेषता और अपने महत्व के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया
कुछ मान्यताओं के अनुसार श्री वेंकटेश्वर स्वामी अपनी पत्नी पद्मावती के साथ यहां पर निवास करते हैं और जिसके कारण भक्त श्रद्धालु उनके दर्शन मात्र से ही अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं क्योंकि ऐसा कहा जाता है जो भी भक्त अपने पूरे सच्चे मन से श्री वेंकटेश्वर स्वामी जी के दर्शन करता है तो उसके हर एक काम सफल होते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है और हमेशा सच्चाई के साथ रहते हैं
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने वेंकटेश्वर रूप में धरती पर आने का निश्चय किया तो उन्होंने अपने रहने के लिए दीमक की ममी को चुना जिस पर रोज एक गाय आकर अपना दूध डालकर चली जाती और वेंकटेश्वर भगवान उस दूध को पी लिया करते लेकिन एक बार जब गाय के मालिक ने यह सब देखा तो क्रोध में गाय के ऊपर कुल्हाड़ी से प्रहार कर दिया और वेंकटेश्वर भगवान ने यह सब देख कर उस गाय को बचाने के लिए गाय के सामने खड़े हो गए जिसके बाद वह कुल्हाड़ी श्री वेंकटेश्वर भगवान के माथे के ऊपर लग गई और जिस पर श्री वेंकटेश्वर भगवान के वहां से कुछ बाल उखड़ गए और कुछ चोट लग गई जब उनकी माता ने यह सब देखा तो उनको बहुत दुखी हुइ और जब भगवान वेंकटेश्वर सो रहे थे तब उनकी माता ने अपने बाल उखाड़ कर श्री वेंकटेश्वर भगवान के चोट लगी जगह पर लगा दिए जिसके बाद वह चोट भी ठीक हो गई और वह बाल भी सही तरह लग गए और जब वेंकटेश्वर भगवान नींद से जागते हैं तो वे देखते हैं कि उनके लिए उनकी माता ने अपने बालों का त्याग कर दिए तो उसी पर भगवान वेंकटेश्वर कहते हैं कि बाल सुंदरता का प्रतीक होते हैं और तुमने मेरे लिए अपने बालों का त्याग किया है और आज से जो भी भक्त मेरे लिए अपने बालों का त्याग करेगा उसकी हर एक मनोकामना पूर्ण होगी तभी से तिरुपति बालाजी के मंदिर जाने वाले मुंडन करने के बाद भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन करते हैं और मनचाहा फल पाते हैं
तिरुपति बालाजी के पीछे की कहानी | Tirupati Balaji Story
धार्मिक मान्यताओं और वेद ग्रंथ से पता चलता है की श्री विष्णु ने ही श्री वेंकटेश्वर स्वामी के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया था कहां जाता है यह कलयुग के कष्टों से अपने भक्तों को बचाने के और मानव कल्याण के लिए श्री हरि ने यह अवतार लिया था
पौराणिक ग्रंथों की माने तो तिरुपति बालाजी के पीछे दो कहानी है पहली कहानी में कहा जाता है की श्री विष्णु ने वराह अवतार के बारे में बताया है और दूसरी कहानी श्री विष्णु के दूसरे अवतार श्री वेंकटेश्वर स्वामी के बारे में बताई जाती है
1. वराह अवतार से जुड़ी कहानी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार हिरण्याक्ष नाम के राक्षस ने पूरी पृथ्वी को पाताल लोक के समुद्र में छिपा दिया था जिसके बाद त्राहिमाम त्राहिमाम मच गया और फिर भगवान विष्णु ने पृथ्वी को बचाने का निश्चय किया जिसके बाद भगवान विष्णु ने एक जंगली सूअर का अवतार लिया जिसे वराह अवतार के नाम से जाना जाता है इसकी विशेषता यह है कि यह पानी धरती पर दोनों जगह रह सकता है और इसी विशेषता के कारण भगवान विष्णु ने यह अवतार लिया था जिसके बाद भगवान विष्णु के वराह अवतार ने हिरण्याक्ष नाम के राक्षस का वध करके पृथ्वी को पुनः स्थापित किया था जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने भक्तों को यह वरदान दिया था कि मैं आने वाले समय में मै पृथ्वी पर श्री वेंकटेश्वर स्वामी के नाम से जाना जाऊंगा और मैं इस धरती पर वास करूंगा
2. श्री लक्ष्मी और तिरुपति बालाजी के पीछे की कहानी
कुछ मान्यताओं के अनुसार जब कलयुग का प्रारंभ हुआ तब भगवान विष्णु के सभी अवतार जितने भी भगवान विष्णु ने सृष्टि को चलाने के लिए अवतार लिए थे वह सभी अवतार वैकुंठ लोक वापस चले गए जिसके बाद ब्रह्मा जी को चिंता होने लगी कि इस सृष्टि का दोबारा संचालन और अपने भक्तों ऋषि-मुनियों का उद्धार कौन करेगा तभी त्रिदेव ने विचार किया की सृष्टि के पालन करता भगवान विष्णु है तो वे ही कुछ उपाय निकालें जिससे भक्तों का कल्याण हो सके और ऋषि मुनियों की तपस्या का फल उन्हें प्रदान कर सकें जिसके बाद भगवान विष्णु ने वेंकटेश्वर स्वामी के नाम से अवतार लिया और कहां की मैं इसी रूप में भक्तों का उद्धार उनकी मनोकामना पूर्ण करूंगा और ऋषि-मुनियों को उनकी तपस्या वे उनके कर्मकांड का फल प्रदान करूंगा जिसके बाद तिरुपति बालाजी के मंदिर में श्री वेंकटेश्वर स्वामी भगवान स्थापित हो गई और आज आप देख सकते हैं कि उनके इस मंदिर को प्रसिद्ध मंदिरों में गिना जाता है और भक्त श्रद्धालु श्री वेंकटेश्वर स्वामी के दर्शन मात्र से ही अपने पापों से मुक्त हो जाते हैं और अपनी मनोकामना को पूर्ण करते हैं
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