खाटू श्याम का इतिहास | Khatu Shyam Mandir

इस BLOG में आप जानेंगे कि history of Khatu Shyam, Khatu Shyam Mandir, Khatu Shyam Temple, khatu shyam ki kahani, Khatu Shyam Temple Rajasthan के बारे में खाटू श्याम कौन है कृष्ण भगवान ने खाटू श्याम से क्या कहा था और इन्हें हारे का सहारा क्यों कहा जाता है इस बारे में इस ब्लॉग में विस्तार हो उनसे बात होगी

खाटू श्याम का इतिहास | Khatu Shyam Mandir

खाटू श्याम की कहानी इतिहास | Khatu Shyam ki Kahani

आज के समय में खाटू श्याम का मंदिर भक्तों श्रद्धालुओं के लिए एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बन चुका है जोकि राजस्थान के प्रसिद्ध जिले सीकार में स्थित है और भक्त यहां पर हर रोज बड़ी मात्रा में आते हैं और कहते हैं कि बाबा श्याम के दर्शन मात्र से ही उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं और कष्टों का भी निवारण हो जाता है शायद इसलिए बाबा श्याम को हारे का सहारा भी कहा जाता है यहां पर केवल देश से ही नहीं बल्कि विदेश से दूर दूर से बाबा श्याम के दर्शन करने के लिए भक्त आते हैं और इसीलिए यह बाबा श्याम का मंदिर विश्व विख्यात मंदिर बन चुका है कहा जाता है कि यह मंदिर 1000 साल पुराना है जिससे अजय सिंह जी ने 1720 में दोबारा इसका पुनर्निर्माण करवाया था और पौराणिक मान्यता के अनुसार खाटू श्याम की अपार शक्ति और क्षमता से प्रभावित होकर भगवान कृष्ण ने इन्हें कलयुग में अपने नाम से पूजनीय का वरदान दिया था और कहा था कि जैसे जैसे कलयुग अपने वर्षों के अनुसार आगे बढ़ता रहेगा ऐसे ही खाटू श्याम मंदिर की प्रसिद्धि भी बढ़ती जाएगी और जैसा कि आज के समय में आप सभी या हम देख सकते हैं

खाटू श्याम कौन थे | Khatu Shyam Ji

Khatu Shyam Ji

कुछ मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जब पांडव अपनी जान बचाने के लिए वन वन भटक रहे थे तो वहां पर एक हिडिंबा नाम की राक्षसी दिखाई पड़ी जिसने पांडवों को सहारा दिया और उनकी जान बचाने में उनकी सहायता की जिसके बाद भीम और हिडिंबा के बीच प्रेम उत्पन्न होने लगा और फिर बाद में भीम के द्वारा हिडिंबा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम घटोत्कच था और फिर जैसे ही घटोत्कच बड़ा होता है तो घटोत्कच के भी एक पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम बर्बरीक था और बर्बरीक और घटोत्कच दोनों ही बलशाली योद्धाओं में थे दोनों को इन्हीं के बल के कारण काफी प्रसिद्धि और जाना जाने लगा और जब पांडव और कौरवों के बीच युद्ध शुरू हुआ तो बर्बरीक ने भी युद्ध में शामिल होने की इच्छा जताई और उन्होंने अपनी माता को वचन दिया था कि वह हमेशा कमजोर पक्ष की ओर से युद्ध में भाग लेंगे और इस बारे में भगवान कृष्ण पहले से ही जानते थे तो जब भगवान कृष्ण बर्बरीक के पास जाते हैं और पूछते हैं कि तुम किस पक्ष की ओर से लड़ोगे तो उन्होंने कहा कि मैं कमजोर पक्ष की ओर से लडूंगा तब भगवान कृष्ण ने उन्हें सच्चाई बताते हुए कहा कि तुम ना ही तो कौरवों की ओर से लड़ोगे और ना ही पांडवों की बल्कि तुम पूर्णता इस युद्ध में सभी योद्धाओं का विनाश कर दोगे लेकिन भगवान कृष्ण जानते थे कि इस युद्ध में पांडवों की जीत निश्चित है लेकिन यदि बर्बरीक युद्ध में भाग लेंगे तो ना ही पांडव और कौरवों का विनाश निश्चित है

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बर्बरीक का नाम खाटू श्याम क्यों पड़ा | Khatu Shyam Mandir

Khatu Shyam Mandir

जब बर्बरीक ने भगवान कृष्ण को बताया कि वह युद्ध में कमजोर पक्ष की ओर से भाग लेगा तब भगवान कृष्ण जानते हैं कि यदि आज कौरव पक्ष मजबूत है तो कल पांडव पक्ष कमजोर होगा और यदि कौरव पक्ष कमजोर हुआ तो पांडव पक्ष मजबूत होगा तो ऐसे में महायुद्ध होना निश्चित था जिसमें भगवान कृष्ण जानते थे यदि बर्बरीक ने इस युद्ध में भाग लिया तो नहीं पांडव बचेंगे और ना ही कौरव तो इसी गुत्थी को सुलझाते हुए भगवान कृष्ण ने बर्बरीक से एक वचन मांगा कि में जो भी मांग लूंगा तुम मुझे हंसते हुए वह प्रदान जरूर करोगे तब बर्बरीक भगवान कृष्ण को वचन दे देते हैं जिसमें भगवान कृष्ण उनका शीश मांग लेते हैं तब बर्बरीक हंसते-हंसते भगवान कृष्ण को वह शीश देते है लेकिन उन्होंने महाभारत युद्ध को देखने का इच्छा जताई तब भगवान कृष्ण उनके शीश को एक ऊंची चट्टान पर रख देते हैं जिसमें भगवान कृष्ण बर्बरीक को यह वरदान देते हैं कि तुम्हें कलयुग में मेरे नाम से जाना जाएगा अर्थात तुम्हें खाटू श्याम के नाम से जाना जाएगा और हारे का सहारा भी बताया जाएगा तभी से इन्हें बाबा श्याम के नाम से जाना जाने लगा
जब एक बार श्री कृष्ण बर्बरीक से बात कर रहे थे तब श्रीकृष्ण कहने लगे कि मैं नहीं मानता कि तुम 3 बाणों से पूरे दुश्मन सेना का विनाश कर दोगे अगर ऐसा है तो तुम मुझे करके दिखाओ तब बर्बरीक अपनी तरकस से बाहर निकाल कर पीपल के एक पेड़ के सूखे पत्तों को निशाना बनाता है पहले उन को चिन्हित करता है दूसरे बाण से पत्तों को चिन्हित करता है जो सही सलामत रहने हैं और तीसरे बाण से पहले के द्वारा चयनित सभी पत्तों को नष्ट कर देता है लेकिन एक पत्ता भगवान कृष्ण ने अपने पैर के नीचे रख लेते हैं तब वह बान भगवान कृष्ण के पैर को भेद नहीं पाता और वह वही अटक जाता है तभी बर्बरीक कहते हैं कि हे भगवान तुम अपना पैर हटा लो क्योंकि मेरे बाण के लक्ष्य के बीच आपका पैर आ रहा है वरना यह बात आपके पैर को भेद देगा तभी श्रीकृष्ण भी कहते हैं कि आज से यह मेरे शरीर का सबसे कमजोर अंग हो चुका है और मेरी देह त्यागने का कारण भी यही हिस्सा बनेगा

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